शनिवार, 27 नवंबर 2010

डर और प्रेम








प्रेम बस नाम ही है
किसी सुखद एहसास का
उसका एहसास ही
भूला देता है सारे सुख
बचता है फिर
सिर्फ और सिर्फ डर
डर, प्रेम के उजागर हो जाने का,
डर ,साथ साथ देखे जाने का,
डर, साथ छूट जाने का,
डर, प्रेम में छले जाने का,
डर, प्रेम का ‘शादी के द्वार आने/ न आने का
डर,प्रेम का समय के घोड़े की पीठ से फिसल जाने का
डर, प्रेम की जगह किसी और आकशZण में बंधे रह जाने का
डर- डर- डर और डर