बुधवार, 11 नवंबर 2009

कलम की एक सत्ता होती है- विष्णु नागर

22 अगस्त को जबलपुर आये विष्णु नागर जी से मैंने छोटी सी मुलाकात की थी।

जिनकी लेखनी में व्यंग्य का पैनापन हो और कलम आम आदमी की समस्या, पी़ड़ा से भीगी हो। जो लगभग 37 साल से सक्रिय पत्रकारिता से जु़ड़े हैं और साहित्य से जिनका पुराना रिश्ता है। जी हां main बात कर रहे हैं लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार और वरिष्ठ पत्रकार विष्णु नागर की। विष्णु जी अभी नई दुनिया में एक्जक्यूटीव एडीटर होने के साथ ही साहित्य रचना में भी सक्रिय हैं। पेश है परसाई जी की जयंति पर जबलपुर आये नागर जी से बात चीत ...।

सक्रिय पत्रकारिता से जु़ड़े हैं। निरंतर लेखन करते रहे हैं। साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लेखन, चिंतन सबकुछ कैसे संभव हो पाता है?
नागर जी- यह इतना मुश्किल नहीं है। पत्रकारिता में रहते हुए अनुभवों का विस्तार होता है। अगर आप चिंतन - मनन के साथ रोज अखबार प़ढ़ें तो जीवन के हर क्षेत्र की जानकारी होगी। मेरी नजर में समाचार पत्र रोज छपने वाला महाभारत ही है। जीवन के हर पहलू दृष्टिगत होते हैं इसमें। पत्रकार होने से यह लाभ भ्ाी है कि चीजें पूर्ण रूप से सामने आती हैं। दिमाग हमेंशा चिंतनशील रखकर आप काम कर सकते हैं। यह सब विशेष मुश्किल नहीं है।

-विष्णु नागर को विष्णु नागर बनाने में किसका योगदान है?
वैसे तो मैं कोई ब़ड़ी हस्ती नहीं हूं। पर मुझे बनाने में सबसे पहले मेरे कस्बे साहजहांपुर का योगदान है जहां मैं पला- ब़ढ़ा, वहां के संस्कार मिले। मेरे अध्यापक और उन किताबों का योगदान रहा है जिन्हें मैंने अब तक प़ढ़ा। दिल्ली में मेरा कोई परिचित नहीं था इसके बाद भी मैं दिल्ली चला आया, मेरी उस दु:साहस और जो लोग मिले उन सबका योगदान रहा है। मेरी जीवन संगनी का भी योगदान है क्योंकि उसने मुझे घर में ऐसा वातावरण प्रदान किया कि मैं आराम से चिंतन, लेखन कर सकूं।

ऐसा क्यों है कि आज पत्रकारिता में आम आदमी से जु़ड़े मुद्दे नहीं उठाए जा रहे हैं।

नागर जी-- मुझे कहते हुए थो़ड़ा सा दुख है कि यह हिन्दी पत्रकारिता के लिए ज्यादा सच है। अंग्रेजी के पत्र - पत्रिकाएं इस मामले में कहीं अच्छी हैं। पता नहीं क्यों हिन्दी में सबको लगता है चीजें हल्की- फुल्की होनी चाहिए। कहीं यह सुनने को मिलता है। दुखी आदमी दुख की खबरें प़ढ़ना पसंद नहीं करेगा। और दुख उनके जीवन में लाने से क्या मिलेगा। बाजारी होने में कोई मुक्ति नहीं है। पाठक - पाठक होते हैं उपभोक्ता या उत्पाद नहीं। वैसे जल्द ही पत्रकारों को अपनी सीमा समझ में आ जाएगी। लौटेगी पत्रकारिता मुद्दों और आम आदमी की ओर।

राजनीति और प्रशासन के हाल देखते हुए आम आदमी की समस्या कैसे सुलझेगी।
नागर जी-कलम की एक सीधी सत्ता होती है। पत्रकार और साहित्यकार को यह लग सकता है कि उनकी कलम से अब कुछ नहीं हो रहा पर ऐसा नहीं है। हां यह है कि तत्काल स्थितियां नहीं बदलती पर शुरूआत होने लगती है और यह दिखता भी है। पर कोशिश जरूर करनी चाहिए। कई बार ऐसा होता है लोग यह समझ कर कदम रोक लेते है कि इससे क्या होगा या कोई बाधा न आ जाए। इसी भय को कलम चलने वालों को दूर रखना होगा।

इन दिनों हिन्दी ब्लाग की ब़ड़ी चर्चा है। पर ब्लॉग में स्तरीय साहित्य कम ही हैं। क्या आगे इसका भविष्य हिन्दी साहित्य के हिसाब से ठीक है-
नागर जी-ब्लाग बुरा नहीं है। अभी नया- नया है इसलिए दिक्कतें तो आयेंगी ही। यहां कोई विशेष रोक टोक नहीं है इसलिए हर प्रकार की चीजें आ रही हैं। पर इसमें परिपक्वता आयेगी। समय सब सीखाता है तब यह हिन्दी साहित्य के लिए अधिक उपयोगी होगा। इसके माध्यम से विश्व के अधिकाधिक पाठकों तक पहुचा जा सकता है।

क्या आज पत्रकारिता और साहित्य का मूल्याÄास हुआ है।
नागर जी- आज से पच्चास साल पहले भी यही बातें कही जाती थीं। आज भी कहीं जा रही हैं। सच्ची बात यह है कि जो लोग काम करने वाले होते हैं वे हर हाल में काम कर लेते हैं। पहले भी कई अच्छे लेखक , पत्रकार हुए आज भी हैं। सरोकारों के आधार पर लोग उस जमाने में भी जगह पाते थे और अब भी पा रहे हैं। अच्छी चीजें आज भी आ रहीं हैं और आगे भी आएंगी। उनकी मात्रा कम या ज्यादा हो सकती है। पर लोगों को सकारात्मक नजरिया अपनाना होगा।

हिन्दी साहित्य पाठक तक पहुंच सके इसके लिए क्या करना होगा।

नागर जी- इस समस्या के लिए हर मुद्दे पर सुधार जरूरी है। साहित्य ही नहीं पाठक को भी साहित्य की ओर उन्मुख होना होगा। साहित्य को साधारण पाठक के समझ आना होगा। किताबों के मूल्य आज हिन्दी पाठक के जेब से ज्यादा होती हैं। लेखको को नये विचार और नई चेतना से लैस होना होगा। कुल मिलाकर इस समस्या के लिए काफी प्रयास की आवश्यकता है।

क्या कुछ नया लिखने की तैयारी है

नागर जी- हां एक विषय मेरे दिमाग में काफी समय से है। मौका मिलते ही उस पर लेखन शुरू करूंगा। स़ड़क आधारित उस रचना के केंद्र में दिल्ली होगा। आज स़ड़क भी ताकतवर हो गई। आम आदमी के लिए वहां भी जगह नहीं। इन्हीं चिंतन के ताने- बाने से तैयार होगी रचना।